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कोरोना की वैज्ञानिक कुंडली / गुजरात सरकार के बायोटेक सेंटर ने वायरस का जीनोम सीक्वेंस बनाने का काम पूरा किया, इससे दवा बनाने में तेजी आएगी

गांधीनगर. गुजरात सरकार के गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (GBRC) ने कोरोना के वंशसूत्र यानी इसके सूक्ष्म जीनोम सीक्वेंस को ढूंढ निकाला है। सीएम रूपाणी के ऑफिस के ट्विटर पेज पर इसकी जानकारी दी गई है। इस खोज से कोरोना वायरस की उत्पत्ति, इसकी दवा और उसके परीक्षण में तेजी से काम करने में मदद मिलेगी, साथ ही उनके साइड इफेक्ट का पता लगाना आसान होगा।

दरअसल, चीन से लेकर अमेरिका तक दुनियाभर के शीर्ष वैज्ञानिककोरोनावायरस के बारे में अब तक पूरी तरह से जानकारी हासिल नहीं कर पाए हैं और ऐसे में गुजरात की लैब से मिली मदद पूरे वैज्ञानिक जगत के लिए काम आएगी। इस वायरस की न्यूक्लियर सीक्वेंसिंग दुनियाभर में हुई है, लेकिन इस रूप बदलने वाले वायरस में 3 परिवर्तन (म्यूटेशन) ऐसे हैं, जिनके बारे में पता नहीं था क्योंकि वे बिल्कुल नए हैं। गुजरात की लैब में जीनोम सीक्वेंस को पूरा करके वारयस की पूरी कुंडली बनाने का काम हुआ है।

सरल भाषा में समझें इस रिसर्च को
रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर प्रो.चैतन्य जोशी ने बताया कि हर कोशिका में जेनेटिक मटेरियल डी ऑक्सी राइबोन्यूक्लिक एसिड (डीएनए) या राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) के रूप में होता है। मनुष्य में प्रमुखता से डीएनए होता है, जबकि वायरस में आरएनए की भूमिका अहम होती है। इन्हीं से मिलकर बनते हैं जीन्स, जो किसी भी जीव के विकास और व्यवहार को नियंत्रित करते हैं और बीमारियों के मुकाबले में भी महत्वपूर्ण होते हैं। इसे ही जीनोम संरचना कहते हैं। रिसर्च में सामने आया है कि Covid-19 वायरस की संरचना और व्यवहार को आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) नियंत्रित करता है।

वायरस की कुंडली को जानना बेहद जरूरी
वायरस की संरचना और इसके व्यवहार को वैज्ञानिक जितनी जल्दी तरह समझ जाएंगे, दवा बनाने में उतनी ही तेजी आ जाएगी। संरचना से पता लग जाएगा कि इस वायरस को फैलने से कैसे रोकना है और कैसे खत्म करना है। चूंकि यह अदृश्य वायरस है तो सारी लड़ाई सूक्ष्म आणविक स्तर पर होगी। ऐसे में वायरस को अच्छी तरह जानने के बाद हम हम जांच कर सकते हैं कि हमारी बनाई दवा असरदार है या नहीं। यदि जीनोम की संरचना हमारे सामने मौजूद है तो कम्प्यूटर पर हम न केवल हजारों, बल्कि लाखों कम्पाउन्ड का परीक्षण कर सकते हैं, साथ ही टेस्ट के बाद कौन सा कम्पाउन्ड काम करेगा, उसे पहचान कर लैबोरेटरी के लेवल तक ले जा सकते है, जिससे सफल दवा बनाने की संभावना बढ़ जाती है। एक बार ऐसा हो जाए तो फिर बड़े स्तर पर फैक्ट्री में प्रोडक्शन शुरू हो सकता है।

बुनियादी स्तर पर यह काम हो रहा
गुजरात की लैब में वायरस के लगभग 100 सैम्पल की जीनोम सीक्वेंसिंग की जाएगी। इसके आधार पर ड्रग डेवलपमेंट स्ट्रैटजी और वैक्सीन डेवलपमेंट स्ट्रैटजी बनेगी। यहां पर अब तक जो काम किया गया है वह बुनियादी स्तर का है। चूंकि, यह वायरस अपनी संरचना बदलता रहता है और सक्रिय रहने के लिए अलग-अलग वातावरण में नई स्ट्रेन के साथ रूप बदलता है। ऐसे में जो वैक्सीन डेवलप की जाएगी, उसे वायरस की संरचना को बदलकर परखा जाएगा। इसके बाद वैज्ञानिक समझ सकते हैं कि कौन सी दवा वायरस के किसी भी म्यूटेशन के खिलाफ ज्यादा असरदार होगी और उससे टीका बनाने का तरीका भी समझ आ जाएगा।

9 रूप बदल चुका है कोरोनावायरस
कोरोना का वायरस जब एक व्यक्ति से दूसरे में संक्रमित होता है तो अपने अस्तित्व को बचाने के लिए रूप बदलता रहता है, जिन्हें म्यूटेशन कहते हैं। रिसर्च से पता चला है कि यह एक महीने में दो म्यूटेशन पैदा कर सकता है। हर नया म्यूटेशन पिछले वाले से ताकतवर या कमजोर हो सकता है। इस वायरस में अब तक नौ म्यूटेशन यानी परिवर्तन मिले हैं, जिनमें से छह म्यूटेशन की जानकारी पहले से हो गई थी और अब 3 गुजरात की लैब ने रिपोर्ट किए हैं। कुल मिलाकर अब इसमें आए बदलावों की पहचान हो गई है और उनसे नई जानकारियां जुटाई जा रही हैं।

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