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पढ़िए शिवलिंग का वैज्ञानिक महत्व और जलाभिषेक का रहस्य

 ujjain only three kg bhang can be use to preserve mahakal ...

वर्षों पहले कुछ उन्मुक्त विचार वाले लोगों ने भारतीय जीवन में लागू अनुशासन को छुआछूत बताते हुए खत्म कर दिया था। कुछ तिरछी बुद्धि वाले इन दिनों भारत की प्राचीन धार्मिक परंपराओं पर सवाल उठाते हैं। फिल्म बनाकर शिवलिंग के जलाभिषेक पर सवाल उठाते हैं, क्योंकि वह नहीं जानते कि शिवलिंग पर जल का अभिषेक पृथ्वी के अस्तित्व के लिए कितना अनिवार्य है। कुछ पाखंडी पंडितों के वचनों को उन्होंने पूरा धर्म और विज्ञान मान लिया है, जबकि ऐसा नहीं है। हां यह जानते हैं देशभर में सबसे ज्यादा शिवलिंग की पूजा क्यों की जाती है और लिंग पर जलाभिषेक का रहस्य क्या है:-


भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठा लें, हैरान हो जायेंगे। भारत सरकार के न्युक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। इसका तात्पर्य हुआ कि भारत में स्थापित ज्योतिर्लिंग कुछ और नहीं बल्कि न्युक्लियर रिएक्टर्स हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वो शांत रहें।


केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में प्रसिद्ध शिवलिंग

▪️ आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ऐसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक ही सीधी रेखा में बनाये गये हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडु का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79°E 41’54” Longitude की भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।




वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।





▪️ अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच लिंगों को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्टापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसी विज्ञान और तकनीकी थी जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होंगे जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते हैं। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवतया यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यान में रखते हुए बनाये गये हों जो 81.3119° E में पड़ता है!? उत्तर शिवजी ही जाने।

कमाल की बात है "महाकाल" से ज्योतिर्लिंगों के बीच सम्बन्ध देखिये


हिन्दू धर्म में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता। उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना गया है, जो सनातन धर्म में हजारों सालों से मानते आ रहे हैं। इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं करीब 2050 वर्ष पहले और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क) अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायी गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला। आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये।

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