बिर्रा-पौराणिक पर्व है रक्षाबंधन इस पर्व का बहनें पूरे साल इंतजार करती हैं।अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं और भाइयों की दीर्घायु, समृद्धि व ख़ुशी की कामना करती हैं। विश्वास की रेशमी डोरी बंधवाकर भाई भी बहन की रक्षा का वचन देता है।
रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं, बल्कि शुभ भावनाओं का प्रतीक होता है। इस पवित्र पर्व में हीरे-मोतियों की नहीं, बल्कि प्यार की जरूरत होती है। ऐसे में हम अपनी परंपराओं को छोड़कर मंहगे उपहार और फैंसी चाइनीज राखियों और उपहारों के बीच उलझ रहे हैं। प्रीत के इस पर्व में भला पिकाचू, सुपरमैन का क्या काम? क्या हम कच्चे धागे के मजबूत बंधन की परंपरा नई पीढ़ी को नहीं समझा सकते? क्या हम इस त्योहार की पौराणिकता, पवित्रता और महत्ता को बरकरार रखते हुए इसे नहीं मना सकते? बाजारवाद के इस युग में इन प्रश्नों पर मनन करना बेहद प्रासंगिक हो जाता है...भाई-बहन के प्रेम व विश्वास का प्रतीक कच्चे धागे का त्योहार रक्षाबंधन कब लक्जरी फेस्टिवल में बदल गया किसी को पता ही नहीं लगा। जबसे बाजार ने विशेष रूप से चाइनीज आइटम्स ने दांव लगाया तो इसका स्वरूप ही बदल गया। अब इस दिखावटी प्रक्रिया को तोडऩे की बारी है भावनाओं के इस पर्व को परंपराओं के साथ मनाने और दिखावे में नहीं फंसने की तैयारी है!!
0 टिप्पणियाँ