इंदौर मालवी बोली को आज की पीढ़ी तक पहुंचाने और उसकी अहमियत के साथ लोकप्रिय बनाए रखने के लिए गत 24 वर्षों से जारी मालवी जाजम के प्रयास में इस बार कोरोना संक्रमण, विवाह का मौसम और शरद ऋतु की सिहरन तीनों को ही शामिल किया गया। रविवार को ऑनलाइन जमी मालवी जाजम की महफिल में मालवी बोली की रचनाओं को प्रस्तुत किया गया।
आयोजन की शुरुआत वरिष्ठ मालवी कवि नरहरि पटेल ने की। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए 'जान है तो जहान है, हम जीवित रांगा तो मानवता भी जीवित रेवेगा, कोरोना नियमों का पालन करोगा तो कोरोना से बची के रोगा" के माध्यम से अपील जारी की गई। इसके अलावा उन्होंने गुजरे दौर के विवाह समारोह की तुलना आज के दौर के विवाह समारोह से बहुत ही दिलचस्प ढंग से करते हुए यह पीड़ा दर्शाई कि आज के विवाह समारोह में आनंद, आत्मीयता, प्रेम और उल्लास नहीं है। टोंकखुर्द देवास से लियाकत पटेल ने भी कोरोना को ही रचना का आधार बनाया। उनकी रचना 'नगर-नगर और देश-विदेश में फैला ये कोरोना है, लिया लपेटे में दुनिया को घर-घर मातम रोना है, मतदान था जब तक छुट्टी पर था अब फिर ड्यूटी पर कोरोना है' ने पीड़ा और व्यंग्य दोनों का रंग लिए हुए थी। मुकेश इंदौरी की रचना 'मांडो ब्याव हे तो कई हुओ, मस्ती में भी संभलने रीजो, कोरोना हाल गयो नी है तमारे आसपास ज है, कूण जाणे कित्ती माओं की ओर गोद सूनी करेगा, कितरा ओर खून का आंसू रूलावेगा, कसा-कसा दन ओर यो दिखायगा, कई ग्यारस ने कई आखातीज ने कई पूनम, शामे मालवा भी जाड़ा की उदास है' ने वेदना और सावधानी दोनों को ही शामिल कर संदेश दिया। रेणु मेहता ने विवाह पर रचना पेश की। 'छम-छम आई रे नाचती घोड़ी मंडप में, घोड़ी पे से लाड़ा के उतारो रे, भाप दिलाओ, सैनिटाइज से हाथ-पांव पखारो रे, पान में गिलोय की गोली खिलाओ ने, मास्क पेनाओ रे, बरातियों के तुलसी, अदरक, कालीमिर्च को काड़ो पिलाओ रे' सुनाकर खूब दाद बटोरी। आयोजन में नंदकिशोर चौहान, हरमोहन नेमा, डॉ.शशि निगम, कुसुम मंडलाई, डॉ. देवेन्द्र जोशी, डॉ. राजेश रावल, माया बदेका, नयन राठी, हेमलता शर्मा आदि ने भी रचना पाठ किया।
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