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कोरोना काल में कविता का दौर


 🌹🌹🌹ग़ज़ल🌹🌹🌹

बन गई है अब परिंदा ज़िन्दगी

क़ैद में होने लगी है बेक़ली।।

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हसरतें भी हो रहीं हैं कागजी

चश्म नम है और बस है तीरगी।।

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गुफ़्तगू भी वो हवा से क्या करे

अब तो सहमा सा दिखे हर आदमी।।

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लोग दिखते ही नहीं महफ़ूज अब

बस घुटन है और बस है ख़ामुशी।।

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रूठती है नींद भी अब रात में

दिल के कूचे में नहीं है रौशनी।।

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कौन है किस हाल में अब क्या कहें

खैरियत तुम पूछ लेना हमनशीं।।

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मधुलिका दुबे,मधु

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