🌹🌹🌹ग़ज़ल🌹🌹🌹
बन गई है अब परिंदा ज़िन्दगी
क़ैद में होने लगी है बेक़ली।।
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हसरतें भी हो रहीं हैं कागजी
चश्म नम है और बस है तीरगी।।
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गुफ़्तगू भी वो हवा से क्या करे
अब तो सहमा सा दिखे हर आदमी।।
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लोग दिखते ही नहीं महफ़ूज अब
बस घुटन है और बस है ख़ामुशी।।
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रूठती है नींद भी अब रात में
दिल के कूचे में नहीं है रौशनी।।
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कौन है किस हाल में अब क्या कहें
खैरियत तुम पूछ लेना हमनशीं।।
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मधुलिका दुबे,मधु
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