शिवपुरी, भा.कृ.अनु.प.-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के निर्देशों के अनुपालन में पूरे देश में 18वां गाजरघास जागरूकता सप्ताह 16 से 22 अगस्त के दौरान मनाया गया। जिसमें गाजरघास के हानिकारक प्रभावों तथा नियंत्रण एवं उन्मूलन के बारे में जानकारी बतलाई जा रही है। इसी क्रम में रा.वि.सिं.कृ.वि.वि. ग्वालियर के कृषि विज्ञान केन्द्र, शिवपुरी द्वारा जनसमुदाय को 16 अगस्त को शासकीय माध्यमिक विद्यालय ग्राम रामपुर में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. पुनीत कुमार के नेतृत्व में अभियान शुरू करते हुए ग्रामीणों, कृषकों, छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों की सहभागिता में संगोष्ठी कर जानकारी दी गई एवं गाजरघास नियंत्रण का विधि प्रदर्शन भी कराया गया।
गतदिनों विभिन्न ग्रामों में डेहरवारा, मड़ीखेड़ा एवं राजगढ़ के साथ-साथ कृषि विज्ञान केन्द्र परिसर में भी गाजरघास जागरूकता अभियान चलाया गया। 20 अगस्त 2023 को कृषि आदान के डिप्लोमा कार्यक्रम में जुड़े जिले के कृषि आदान विक्रेताओं को भी कृषि विज्ञान केन्द्र परिसर में गाजरघास के बारे में विस्तार से जानकारी कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा दी गई। अभियान अंतर्गत अगले दिन 21 अगस्त को ग्राम खरई तेंदुआ के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं के साथ केन्द्र के वैज्ञानिकों ने एक जनजागरूकता रैली का भी आयोजन किया।
गाजरघास का स्वभाव- यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है जो मुख्यतः बीजों से फैलता है। जिसमें लगभग 5 से 25 हजार बीज प्रति पौधा पैदा करने की क्षमता होती है। बीज अपने हल्के वजन के कारण हवा, पानी और मानवीय गतिविधियों द्वारा आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहंुच जाते हैं। गाजरघास के हानिकारक प्रभाव-सबसे अधिक खतरनाक खरपतवारों में गिना जाता है। क्योंकि यह मनुष्यों और पशुओं में त्वचा रोग, अस्थमा और ब्रोकाइटिस जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। इसके सेवन से पशुओं में अत्यधिक लार और दस्त के साथ मुंह में छाले हो जाते हैं और वनस्पति प्रदूषण भी होता है।
गाजरघास नियंत्रण के उपाय
गाजरघास नियंत्रण के लिए सामुदायिक पहल की आवश्यकता है जिससे अपने आस-पास से गाजरघास को मुक्त रख सकें। गाजरघास में फूल आने से पहले इस खरपतवार को हाथों में दस्ताने पहनकर उखाड़कर वर्मीकम्पोस्ट बना लें। गाजरघास को विस्थापित करने के लिए चकोड़ा, गेंदा, चौलाई जैसे स्व-स्थाई प्रतिस्पर्धी पौधों की प्रजातियों के बीज छिड़काव करें। जुलाई-अगस्त के दौरान गाजरघास संक्रमित क्षेत्रों में जैविक कीट जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा को छोड़ें। अकृषित क्षेत्रों में संपूर्ण वनस्पति नियंत्रण के लिए ग्लोइफोसेट (1-1.5 प्रतिशत) शाकनाशी का छिड़काव करें और मिश्रित वनस्पति में गाजरघास के नियंत्रण हेतु मेट्रिब्यूजिन (0.3-0.4 प्रतिशत) या 2, 4-डी (1 से 1.5 प्रतिशत) का छिड़काव फूल आने से पहले करें ताकि घास कुल के पौधों को बचाया जा सके। फसलों में शाकनाशियों के प्रयोग से पहले खरपतवार वैज्ञानिक से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए।
स्वच्छ भारत अभियान के एक घटक के रूप में इस गतिविधि में भाग लेने और गाजरघास मुक्त परिसर सुनिश्चित करने की अपील करते हैं। कार्यक्रम का आयोजन डॉ.शैलेन्द्र सिंह कुशवाह नोडल ऑफिसर के समन्वय में केन्द्र के वैज्ञानिकों डॉ.एम.के.भार्गव, जे.सी.गुप्ता, डॉ.पुष्पेन्द्र सिंह, डॉ.ए.एल. बसेड़िया, डॉ. एन.के.कुशवाहा, वाय.सी.रिखाड़ी, विजय प्रताप सिंह की सक्रिय भूमिका रही।
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