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भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव अमर आजाद प्रतापी...

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव अमर आजाद प्रतापी, अंग्रेज हुए थे कंपित जिनसे छोड़ भागे थे तख्तो ताज। वीर रस की यह कविता जाने माने कवि आशुतोष शर्मा ओज ने समाजसेवी बल्लभदास गोयल की स्मृति में कवि सम्मेलन के आयोजन के दौरान कम्युनिटी हाल में सुनाई। इस दौरान साहित्यकारों व पत्रकारों का सम्मान किया गया। 

वरिष्ठ कवि प्रदीप सुकून ने मुक्तक रुबाई करते हुए कहा कि- सीने में न सूरत पलने लगती है,गांव घर बस्ती जलने लगती है,सदी या लगती है ठंडी होने में, जब होली दिल मे जलने लगती है। कवि अरुण अपेक्षित ने ये होली आनन्द की, भूल सभी अवसाद जला, घृणा की होलिका बचा प्रेम प्रहलाद प्रस्तुत की। हास्य व्यंग्य के कवि राजकुमार चौहान व राम पंडित ने क्रमशः नेताओं और प|ी की चालीसा प्रस्तुत कर सभी को ठहाके लगाने पर विवश किया। इसके बाद आए दिनेश वशिष्ठ ने चुटीले अंदाज में किस्सा सुनाया। डॉ. एचपी जैन ने अपने सुमधुर अंदाज में जिंदगी को जीना प्रेम से, मिलती नहीं बार-बार सुनाकर सभी का दिल जीता। सुरेंद्र शर्मा ने सुनाया- जिसको हो कोई दिक्कत वह चला जाए पाकिस्तान...। 

अंत मे वरिष्ठ कवि हरिश्चंद्र भार्गव ने सुनाया- होली दिल की होली है, आओ सब हिल मिल जाएं, रंगों में डूबें ऐसे सब भेदभाव को भूल जाएं... इसके बाद पुरुषोत्तम गौतम,प्रेमशंकर शर्मा ने आभार प्रदर्शन किया संचालन दिव्या भागवानी व विकास प्रचंड ने किया। 

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