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तिरंगे के साथ विरोध, नई रणनीति


देश में लगातार नागरिकता संशोधन कानून का विरोध प्रदर्शन जारी है, कहीं-कहीं विरोध की  आग बुझती है तो दूसरे ही दिन नये-नये राज्य और शहरों को विरोध में उठ रही आवाजें अपने शिंकजे में ले लेती हैं. अभी तक हिंसक हो चले इस विरोध में कई राज्यों में लगभग दो दर्जन भर लोगों को असमय काल के गाल में समाना पड़ा तो अनेक घायल अवस्था में पहुंच गये, इनमें पुलिस अधिकारी और जवान भी बड़ी संख्या में शामिल हैं.आगजनी भी बड़े स्तर हो रही है, कई जगहों पर उग्र हो चले प्रदर्शन कारियों ने सरकारी संपत्ति को आग के हवाले कर लूटपाट भी की है.सरकार इसे रोकने के सभी उपाय कर रही है मगर बिना किसी तैयारी के संसद के दोनों सदनों में पास कराये गये इस कानून को लागू कर देने से फैली अराजकता को वो रोक नहीं पा रही है, लिहाजा इस कानून की भी गति नोटबंदी और जीएसटी की तरह हो रही है,जिसमें सरकार फेल रही. सरकार ने आनन-फानन में नागरिकता कानून 1955 को संशोधन कर देश में लागू कर दिया, जबकि इससे होने वाले विरोध को रोकने की उसने कोई तैयारी नहीं की थी. हाल ही में पारीत कश्मीर से धारा 370 की समाप्ती और माननीम उच्चतम न्यायालय के आदेश पर राम मंदिर निर्माण के रास्ते साफ कर देने के फैसले के समय सरकार ने जिस तरीके से देश में किसी भी विरोध व रक्तरंजित घटनाओं को रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम किये थे, वे इस कानून के पास होने के बाद हवा-हवाई दिखे. परिणाम सामने है कि संसोधन के पूर्व से  ही भाजपा शासित असम और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में चल रहे विरोध प्रदर्शन  संसोधन पास होते ही हिंसा के हवाले हो गये.इस कानून के विरोध में असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में हजारों की संख्या में छात्र,बच्चे और बुजुर्ग सड़कों पर उतर आये जो देश के लिए अति चिंता का विषय है. उत्तर प्रदेश, राजधानी दिल्ली, मप्र के जबलपुर व अन्य हिंदी राज्यों सहित बेंगलुरु, व पश्चिम बंगाल में सड़कों पर उतरे अल्पसंख्यक मुस्लमानों ने भी आजादी के बाद पहली मर्तबा सरकार के प्रति विरोध प्रदर्शन में अपने पारंपरिक व हरे इस्लामिक झंडों को तिलांजलि देते हुये देश के तिरंगे को अपने विरोध प्रदर्शन का हथियार बना लिया है.

अगर इसका मूल्याकंन किया जाये तो हकीकत में यह भारत के अन्दर सदी की सबसे बड़ी घटना है. कई मुस्लिम विद्धान और विश्लेषक समय-समय पर कहते रहे हैं कि इस्लाम भारत माता की जय और तिरंगे को लहराना गलत मानता है. देश में कई मर्तबा इस पर सुलगती बहस-मुरम्मत हुई हैं, मगर नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में पूरे देश में मुस्लिम प्रदर्शन कारियों ने न केवल अपने हाथों में तिरंगे थामे बल्कि पूरे जोश-खरोश से कई जगहों पर भारत माता की जय का भी उदघोष किया. ये मंथन का विषय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के  इस नये इंडिया में मुस्लमान सरकार से डर गये हैं या फिर उनमें अपने माद रे वतन के प्रति जागरुकता का संचार हो गया है?  ये बहुत गहन और अविस्मरणीय है कि हिन्दूओं के साथ-साथ बड़ी संख्या में संसोधित नागरिकता कानून का विरोध प्रदर्शन कर मुस्लिम अब सड़कों पर न इस्लामिक झंडों को लहरा रहे और न ही अल्लाह -हो-अकबर के नारे लगा रहे हैंं. हकीकत में ऐसा करके वे सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब रहे हैं. क्योंकि जिस प्रकार से प्रधानमंत्री और ग्रह मंत्री अमित शाह ने संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव पर आये विरोधी दलों के किसी भी संसोधन को विधेयक मे शामिल करने से इनकार कर दिया जबकि प्रस्ताव पर खुद को समर्थन दे रहे किसी भी दल की बात नहीं मानी, अब वे प्रदर्शनकारियों के सुझावों को मानने की बात खुलेआम कह रहे हैं. यह सच है कि मुस्लमानों ने प्रदर्शन के दौरान अल्लाह हो..अकबर के नारे लगाये होते और इस्लामिक हरे झंडे थामे होते तो सोची-समझी रणनीति के तहत उनका सामना सरकार और पुलिस प्रशासन से न होकर संघ और हिन्दू संगठन के हिंदूओं से होता जो की दंगों का रुप भी ले सकता था. मगर नये इंडिया के नये मुस्लमानों ने एक तरफ जहां हाथों में तिरंगा और भारत माता की जय के नारे लगाकर जहां पूरी दुनिया का ध्यान इस नागरिकता कानून पर ला खड़ा किया तो वहीं देश के हुकुमरानों व प्रजा को भी भारी आश्चर्य में डाल दिया. मगर और ज्यादा अच्छा होता कि वे तिरंगों, और भारत माता की जय के नारों के साथ-साथ सरकारी और निजी संपत्तियों को नुकसान न पहुंचाकर शांतिपूर्वक धरना और प्रदर्शन करते. हालांकि इस नई रणनीति के कारण देश के बहुसंख्यक हिंदूओं ने मुस्लमानों के खिलाफ कोई प्रदर्शन और विरोध में आवाज नहीं उठाई है मगर संपत्तियों को आग के हवाले कर मिलने वाली हमदर्दी को जरुर खोया है.

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