Music

BRACKING

Loading...

भूखी महिलाओं ने घेरी नपा व कलेक्ट्रेट, प्रशासन के खाना बांटने के दावों की खुली पोल shivpuri news


शिवपुरी। शासन और प्रशासन द्वारा लगातार यह दावा किया जा रहा है कि किसी भी गरीब परिवार को भूखा नहीं रहने दिया जाएगा, परंतु प्रशासन के इन कागजी दावों की पोल मंगलवार को भूखी महिलाओं की उस भीड़ ने खोल दी, जो प्रशासन से राशन और भोजन मांगने के लिए कलेक्ट्रेट और फिर नगर पालिका जा पहुंची।
दर्जनों की संख्या में कलेक्ट्रेट और नगर पालिका पहुंची इन महिलाओं से जब पत्रिका ने लॉकडाउन के बाबजूद उनके यहां आने का कारण जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनके मजदूरी, काम-धंधे सब कुछ बंद हो चुके हैं। घरों में खाने को राशन नहीं बचा है, इसलिए वह आज कलेक्ट्रेट और नगर पालिका गई थीं, ताकि कम से कम उन्हें पेट भरने को राशन और खाना आदि तो मिल जाए।
ठकुरपुरा में नई पानी की टंकी के आस पास रहने वाली इन सभी महिलाओं के अनुसार नगर पालिका का अमला आज तक उनके यहां खाना या राशन लेकर नहीं पहुंचा है और न ही कोई धर्म करने वाला आज तक उन्हें कोई राशन देकर आया है। महिलाओं के अनुसार ऐसे में उनके सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है। महिलाओं की मांग है कि प्रशासन द्वारा जो भोजन और राशन गरीबों के लिए वितरित किया जा रहा है, उन्हें वह राशन दिया जाए।
इसी तरह से फतेहपुर, मनीयर, लालमाटी आदि क्षेत्रों की भी दर्जनों महिलाएं नगर पालिका पहुंची थीं। उनका भी आरोप था कि अगर नगर पालिका खाना और राशन बांट रही है, तो आखिर किसे देकर आ रही है। ऐसे में विचारणीय पहलू यह है कि क्या नपा सिर्फ कागजों में ही राशन बांटने में लगी हुई है।
घर में आटा तक नहीं, फैलाने वाले हाथ
लॉकडाउन के कारण साइंस कॉलेज के पास एक टूटे-फूटे किराए के कमरे में रहने वाले फिरोज खान की स्थिति यह हो गई है कि उसे आज अपने परिवार का पेट पालने के लिए दूसरे लोगों के सामने हाथ फैलाने को मजबूर होना पड़ा। फिरोज के अनुसार राशन कार्ड पर आठ साल से पात्रता पर्ची नहीं आई है, इसलिए कंट्रोल वाले ने भगा दिया, उसे राशन तक उपलब्ध नहीं कराया। एक एक्सीडेंट में उसका पैर खराब हो गया है, इसलिए वह कुछ कर नहीं पाता।
दो बेटे रोज मजदूरी करके लाते थे, तब घर का चूल्हा जलता था, परंतु बाजार बंद हो गया तो वह मजदूरी भी हाथ से निकल गई, इसलिए आज लोगों से मांगने पर मजबूर होना पड़ा है। नपा का कोई खाना या राशन उनके यहां नहीं आया है। जब फिरोज की बातों को सुनने के बाद उसके घर जाकर देखा, तो घर में आटे का बर्तन खाली पड़ा था, फिरोज की पत्नी शाहिदा ने बताया कि घर में थोड़े से चावल पड़े थे, आज वही चावल पका कर थोड़ा-थोड़ा खाया है। अब घर में अन्न का दाना तक नहीं है। ऐसे दृश्य कहीं न कहीं समाज की दशा और प्रशासन के फेल्युअर को सामने ला रहे हैं।
न फिके और न कोई भूखा रहे...
वर्तमान में शहर के जो हालात हैं, उनमें ऐसा नहीं है कि शहर में समाजसेवी, विभिन्न संस्थाएं आदि भूखे और गरीब परिवारों को भोजन अथवा राशन उपलब्ध नहीं करा रहे हों।
दर्जनों लोग व संस्थाएं पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध करवा रही हैं, परंतु इन संस्थाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि न तो किसी के यहां इतना पहुंच जाए कि गरीब परिवार के सामने भी फेंकने की नौबत आ जाए और न ही कोई परिवार भूखा रहे। वास्तविक अर्थों में यही सच्ची समाज सेवा और अन्न का सम्मान होगा।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ