जांजगीर-चांपा: लॉकडाउन के कारण जिले के साड़ी बुनकर का हाल इन दिनों खराब है, कुरदा (चांपा) के 250 परिवार समेत जिले मे लगभग 7 हजार देवांगन परिवार हैं जो कोसे का काम करते हैं. लेकिन लॉकडाउन के चलते इन लोगों के पास धागा की कमी हो गई है जिसके वजह से इनका काम पूरी तरह ठप हो गया है.
बुनकरों की मानें तो ना इन्हें पहले से बने सामान को बेच पा रहे हैं. पैसों की तंगी की वजह से महाजनों ने भी माल लेने से मना कर दिया है
बुनकरों के मुताबिक लॉकडाउन के वजह से जिले मे करोड़ों के कोसे का कारोबार प्रभावित हो चुका है. जिससे इस जिले के बुनकर परिवारों की हालत खस्ता है. कई पीढ़ी से ये लोग कोसे के धागे से साड़ी बनाने का काम करते हैं मगर अब इनके पास धागा नहीं है. जो महाजन इनको धागा देकर साड़ी बनवाते थे वे भी अब धंधा मंदा होने की बात कहकर धागा की आपूर्ति नहीं कर रहे हैं.बुनकरों का कहना है कि 4 से 5 सदस्य मिलकर एक सप्ताह में कोसे की एक साड़ी तैयार करते हैं और उन्हें इसकी मजदूरी साड़ी की डिजाइन के अनुसार एक से दो हजार रूपए तक मिलती है. बुनकरों का कहना है कि जो साड़ी पहले से तैयार कर रखी हुई है उसकी भी राशि बुनकरों को नहीं मिली है.
*पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे हैं यहीं काम, हमें नहीं आता और कोई काम*
वहीं बुनकर घासीराम ने बताया कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी साड़ी बनाने का काम कर रहे हैं, ना शासन द्वारा हमारा जाॅब कार्ड बना है,ना कोई हमें मजदूरी के लिये बुलाते हैं, हमें इसके अलावा कोई काम आता भी नहीं है, यहीं हमारे जीविकोपार्जन का साधन है।
*लाॅकडाउन के बाद से कोई काम नहीं, आर्थिक तंगी से जूझ रहे बुनकर*
लगभग एक माह से साड़ी बुनने का काम ना चलने के कारण बुनकरों के परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है.
इस संबंध मे बुनकर घासीराम देवांगन का कहना है कि शासन द्वारा अभी तक किसी भी कोसा साड़ी बुनकरों को कोई मदद नहीं पहुंचाई गई है. उनके लिए अब परिवार भी चलना मुश्किल हो गया है.
बुनकर दिलीप ने बताया कि लॉकडाउन के चलते इस बार शादी भी बहुत कम हुई हैं. ऐसे में कोसे की साड़ी की मांग भी कम हो गई. यहां की साड़ियां समूचे हिन्दुस्तान के अलावा विदेशों मे भी बेची जाती हैं. महाजनों के मुताबिक कोसे के बाजार की स्थिति दयनीय है और लॉकडाउन के खुलने के बाद भी बाजार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण और ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ेगी।


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