स्वास्थ्य विभाग का पहले एक नारा परिवार नियोजन के लिए चलता था जिसमें कहा जाता था हम दो, हमारे दो। लेकिन वर्तमान पीढ़ी में अब इसमें भी बदलाव आ गया है, अब सामाजिक रूप से पढ़ी लिखी पीढ़ी द्वारा कहा जा रहा है हम दो, हमारा एक।
इस कल्चर में जहां हमें अपनों से दूर किया है, वही जीवन में निराशा और तनाव का जन्म हुआ है। इसकी अहम वजह एकल परिवारों का बढ़ना और संयुक्त परिवारों का घटना है। यह बात भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी द्वारा आयोजित किए गए हैप्पीनेस प्रोग्राम कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भोपाल से आई मास्टर ट्रेनर प्रिया सोनपार ने कही।
कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन से किया। रेड क्रॉस अध्यक्ष कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह ने जीवन के लिए स्वास्थ्य को सबसे अहम बताया। और कहा कि यदि आप स्वस्थ, मानसिक रूप से प्रसन्न हैं तो दुनिया की सारी खुशियां और दौलत आपके कदमों को चूमेगी वरना सब कुछ बेकार है। जबकि कार्यक्रम का संचालन समीर गांधी ने व्यक्त किया। इस अवसर पर एसपी राजेश सिंह चंदेल सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी और शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
चाय में उबाल आया तो, गंदगी साफ करने उपकरण, लेकिन दिमाग में तनाव आया तो उसे साफ करने कोई उपकरण नहीं
मास्टर ट्रेनर प्रिया उबाल ने गुस्से को रोकने के उपाय को बताते हुए कहा कि जिस तरह गैस पर कोई पात्र में चाय बन रही है और उसमें ऊबाल आ जाए तो बर्तन खराब होने के साथ-साथ हत्ता, गैस यहां तक की प्लेटफार्म तक खराब हो जाता है। उसे साफ करने के लिए हमारे पास उपाय हैं। लेकिन सोचिए कहीं दिमाग में कोई तनाव आया तो क्या उसे सही करने का हम पर कोई उपकरण है, बिल्कुल नहीं।
दिमाग को सही रखने के लिए हमें जीवन को खुशहाल बनाना ही पड़ेगा और यदि हम अपने ईगो में तनावग्रस्त रहे तो इससे मानसिक परेशानियां बढ़नी तय है। जिसकी वजह से बीपी, डिप्रेशन जैसी बीमारियों का शरीर में जन्म होता है। और इनसे हमें बचना है तो इसका सीधा-सीधा उपाय खुश रहना है। हम एक दूसरे के प्रति अच्छी भावना रखें और दूसरों को भी खुश रखने की प्रेरणा दे।
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