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MP : विज्ञान की अच्छी और प्रामाणिक फिल्में बनाने के लिए रिसर्च बहुत जरूरी : प्रो. सदानंद सप्रे



विज्ञान की अच्छी और प्रामाणिक फिल्में बनाने के लिए रिसर्च बहुत जरूरी है, फिल्मों में केवल इन्फॉर्मेशन से काम नहीं चलता है, फिल्मकार को दर्शक के सामने एक नजरिया भी रखना होता है। फिल्म निर्माताओं को डाक्यूमेंटरी फिल्मों में टारगेट आडिएंस पर फोकस करना चाहिये।'' ये विचार मैनिट, भोपाल के पूर्व प्राध्यापक प्रो. सदानंद सप्रे ने मंगलवार को रवीन्द्र भवन में 12 वें राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव में  “भारत में विज्ञान की परम्परा” विषय पर विशेष व्याख्यान में व्यक्त किये


प्रो. सप्रे ने कहा कि भारत की विज्ञान की गौरवशाली परम्परा रही है। इसमें प्राचीन और आधुनिक काल दोनों की उपलब्धियाँ शामिल हैं। उन्होंने बताया कि भारत ने प्राचीन काल में विमानशास्त्र की विद्या और शल्य चिकित्सा में योगदान दिया है, वहीं आधुनिक काल में उपग्रह भेजने के लिए प्रयुक्त रॉकेट के लिए क्रायोजेनिक इंजन और परम सुपर कम्प्यूटर बनाने में अद्वितीय योगदान दिया है।

विज्ञान प्रसार, नई दिल्ली के वैज्ञानिक और विज्ञान संचार विशेषज्ञ डॉ.टी. वेंकटेश्वरन ने विश्वविद्यालयों के जन-संचार के विद्यार्थियों और नवोदित विज्ञान फिल्मकारों को प्रभावी विज्ञान संचार और पटकथा लेखन के गुर सिखाये। विज्ञान प्रसार और साप्ताहिक टेलीविजन विज्ञान कार्यक्रम साइंस मॉनिटर  के संपादक  डॉ. कपिल त्रिपाठी ने ओटीटी चैनल की विभिन्न विशेषताओं को रेखांकित करते हुए बताया कि इस चैनल पर आप अपना कंटेट स्वयं डेवलप कर सकते हैं।

म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद एवं विज्ञान प्रसार द्वारा महोत्सव में दूसरे दिन विभिन्न सत्रों में 15 डाक्यूमेंटरी फिल्म का प्रदर्शन किया गया। इनमें हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी, मलयालम, उर्दू और कन्नड़ भाषाओं की फिल्में थीं।   कोरोना रोबोट्स 2020 फिल्म में कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया पर होने वाले प्रभावों का चित्रण किया गया है। इसमें स्कूली बच्चों की सीखने की विधियों को दर्शाया गया है।

‘लाइफ इन ए बॉटल’  अंग्रेजी और बंगला भाषा में बनाई गई फिल्म है,जिसमें फिल्म निर्माता ने बताया है कि महानगरों के विस्तार से वनों का विनाश हो रहा है, जिसका असर हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है। फिल्मकार ने महानगरों में पर्यावरण को सुधारने के लिए ‘वर्टिकल गार्डिनिंग‘ की नई अवधारणा को भी प्रस्तुत किया है। ‘आर्ट मीट्स साइंस’ फिल्म में बताया गया है कि विज्ञान का दायरा केवल पाठ्य पुस्तकों तक सीमित नहीं है। यह हमारे आस-पास है। फिल्मकार ने कथक नृत्य से वैज्ञानिकों और विज्ञान की बातों को रोचक तरीके से पेश कर कला और विज्ञान को जोड़ने का अभिनव प्रयास किया है।

मंगलवार को जिन विज्ञान फिल्मों का प्रदर्शन किया गया उनमें बस्ते किताब से बाहर, आयी ध्वनि, ग्लोगट्रोटर्स ऑफ कोकारबेल्लूर, आचदोन, कुरू-जस्ट कव्हर इट, आर्ट मीट्स साइंस’,क्लाइमेट चेंज-थ्रेट फॉर फ्यूचर जनरेशन, कोरोना रोबोट्स 2020, कोर्टयार्ड्स, जालीज एंड परगोलाज, लाइफ इन ए बॉटल, लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट-स्वच्छ परिसर, मिशन अहसास-वेटलैंड इकोसिस्टम रेस्टारेशन और ए वे फारवर्ड शामिल थीं। संध्याकालीन सत्र में ‘कविता के रंग विज्ञान के संग’ में विज्ञान कवि सम्मेलन हुआ, जिसमें देश-भर से पधारे कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को सराबोर कर दिया। कवि सम्मेलन की थीम ‘स्वच्छ सागर, सुरक्षित सागर’ थी।

24 अगस्त  के कार्यक्रम

रवीन्द्र भवन में 24 अगस्त को तीन सत्र में 27 फिल्म का प्रदर्शन किया जायेगा। इनमें ‘कहानी नमक की, ब्रेवो बनाना, विलेज ऑन व्हील्स, कल्पना, मल से निर्मल की ओर, द जर्नी ऑफ सिल्क आदि फिल्में शामिल हैं। सुबह के सत्र में विज्ञान प्रसार, नई दिल्ली के कन्सलटेंट डॉ.वी.के. त्यागी ‘विज्ञान फिल्मों में पटकथा लेखन’ विषय पर व्याख्यान देंगे

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