*(शिवरीनारायण मठमंदिर में राम कथा का तीसरा दिन)*
*✒राम का हो जाओ काम तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता नहीं तो काम आपको जीवन भर नचायेगा*
*कथा प्रभु प्रेम में डूबा दे तभी वह कथा है यह आनंद प्राप्ति का साधन मात्र नहीं है*
निर्गुण और सगुण में कोई भेद नहीं है निराकार और साकार में कोई अंतर नहीं है निराकार ही साकार और निर्गुण ही सगुण बनता है यह बातें निकुंज आश्रम श्रीधाम अयोध्या से पधारे हुए श्री जगतगुरु रामानुजाचार्य श्री स्वामी रामकृष्णाचार्य जी महाराज ने शिवरीनारायण मठ महोत्सव में राम कथा का रसपान कराते हुए श्रोताओं के समक्ष तीसरे दिवस अभिव्यक्त की विदित हो कि शिवरीनारायण मठ महोत्सव 23 नवंबर से प्रारंभ हुआ है इसके तीसरे दिवस व्यासपीठ की आसंदी से विद्वान आचार्य ने कहा कि जिन्हें कुछ भी नहीं आता वही कहते हैं कि ब्रह्म राम और दशरथ के बेटे राम अलग-अलग हैं। " एक राम दशरथ कर बेटा, एक राम घर घर में लेटा" वस्तुतः जो दशरथ नंदन है वही व्यापक घट- घट वासी राम है, जो निर्गुण ब्रह्म है वही सगुण होते हैं, निर्गुण और सगुण में कोई भेद नहीं है निराकार और साकार में कोई अंतर नहीं है निराकार ही साकार और निर्गुण ही सगुण बनता है। जिससे आकार निकलता हो उसे ही निराकार कहते हैं जब निराकार परमात्मा राम, कृष्ण, वामन भगवान आदि रूप में निराकार से कोई साकार रूप धारण कर प्रकट होता है, वही साकार है पानी की द्रवीभूत अवस्था जल है और घनीभूत अवस्था बर्फ है। जल को जिस आकार के पात्र में रख दें वह घनीभूत होकर वही आकार धारण करता है इसके लिए उसमें अलग से किसी अन्य तत्व को मिलाने की आवश्यकता नहीं होती। धर्म की स्थापना ही भगवान के अवतार के मूल कारण है भगवान के दो द्वारपाल हैं जय और विजय, यदि हमें ईश्वर तक पहुंँचना है तो अपने इंद्रिय पर जय और मन पर विजय करना होगा जय और विजय तीनों जन्म में राजा बने, एक बात साफ है कि आप एक बार भगवान के हो गए तो यदि आप का पतन भी हो जाए तो भी आप ऊंचाई पर ही रहेंगे। व्यक्ति समाज में रावण कैसे बनता है? समाज में जब उसे उच्च पद प्राप्त हो जाता है तो उसका अभिमान जागृत हो जाता है अभिमान ही मनुष्य को रावण बना देता है जय और विजय भगवान के द्वारपाल के पद की प्राप्ति के पश्चात इतने मदमस्त हो गए कि इन्होंने सप्त ऋषियों को भगवान से मिलने से रोका और श्राप से राक्षस हुए भगवान तक कोई वस्तु यदि पहुंचाना है तो दो ही स्थान है एक अग्नि दूसरा ब्राह्मण अग्नि में हवन से और ब्राह्मण को भोजन कराने से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं, उन्होंने कहा कि यहां शिवरीनारायण में तो अन्न क्षेत्र चल रहा है ऐसी सेवा हमने अन्यत्र कहीं नहीं देखा। पत्नी पतिव्रता हो तो उसके धर्म के आड़ पर आप को अधर्म नहीं करना चाहिए उपासना के आड़ में वासना को जागृत ना होने दें। रामजी ने कभी भी अधर्म को मिटाने के लिए अधर्म का आश्रय नहीं लिया जबकि द्वापर में कृष्ण जी ने अधर्म को अधर्म का सहारा लेकर मिटाया। कथा प्रभु प्रेम में डूबा दें तभी वह कथा है, ध्यान रखना यह आनंद प्राप्ति का साधन मात्र नहीं है। उन्होंने कहा कि नारद जी एक बार कैलाश पर्वत क्षेत्र से गुजर रहे थे वातावरण को देखकर उनके मन में भजन करने की इच्छा जागृत हुई वास्तव में वातावरण को देखकर ही भजन करने की इच्छा होती है इसका सीधा सा अर्थ यह है कि हमें व्यक्ति के निर्माण के स्थान पर वातावरण का निर्माण करना चाहिए व्यक्तित्व का निर्माण तो स्वतः ही हो जाएगा। जीवन गृहस्थ और विरक्त दोनों का ही श्रेष्ठ है दोनों के अंतर को हम शहर के मार्ग की व्यवस्था से समझ सकते हैं। शहरों में दो तरह के मार्ग होते हैं एक बाजार से होकर गुजरता है दूसरा बाईपास रोड हुआ करता है जो बाजार से होकर गुजरे वह गृहस्थ है और जो बाईपास से गुजर जाए वह विरक्त है। गृहस्थ नहीं होंगे तो विरक्त संत आएंगे कहां से और यदि समाज में संत नहीं होंगे तो संसार को दीक्षा कौन दे पाएगा? संसार की सृष्टि के लिए दोनों ही आवश्यक हैं जीवन में यदि बनना है तो राम का ही बन जाना काम आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा *जिसकी लागी रे लगन भगवान में, उसकी दिया भी जलेगा तूफान में। काहे को तू भूल कर बैठा, भज ले सीताराम रे। मन अपने राम बसाले, पहुंच जाएगा धाम रे।।* अपने जीवन में प्रशंसा से बचना। कामदेव ने नारद जी की प्रशंसा की नारद जी को अपनी प्रशंसा सुनकर अभिमान हो गया जब वे भोलेनाथ से मिले तब भोलेनाथ उनसे रामचरित्र सुनना चाहते थे नारद जी काम चरित्र सुनाने लगे लेकिन याद रखना एक बार जो भगवान का दास हो जाता है भगवान कभी भी उसका अहित नहीं होने देते इसलिए हमारे संतों में दास लिखने की परंपरा है हम ठाकुर जी के दास हैं समाज में किसी की गिरावट का जो मजा ले
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