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ब्राह्मण और पंडित में क्या अंतर होता है, क्या दोनों एक ही होते हैं |

भारतवर्ष जिसे अब भारत देश कहा जाता है, ब्राह्मण और पंडित हमेशा से ही चर्चा का केंद्र रहे हैं। कुछ लोग इनकी प्रशंसा करते हैं और कुछ लोग निंदा करते हैं। सबके अपने-अपने कारण हो सकते हैं परंतु एक बात ज्यादातर लोगों में समान होती है और वह यह कि लोक ब्राह्मण और पंडित के बीच अंतर नहीं जानते। ज्यादातर लोग पंडित और ब्राह्मण को एक ही समझते हैं। इसे एक जाति के रूप में माना जाता है। आइए जानते हैं क्या ब्राह्मण और पंडित किसी जाति का नाम है। क्या दोनों ही एक है या फिर अलग-अलग जातियां हैं। या फिर दोनों में से कोई भी जाति नहीं है। 

ब्राह्मण कौन होते हैं, किसे कहते हैं 

भारतवर्ष में जब कर्म के आधार पर वर्ण विभाजन किया गया तब पहली बार ब्राह्मण शब्द का उपयोग किया गया। "ब्रह्मं जानाति सः ब्राह्मणः ,यह ऋषित्व-परणीति।।" अर्थात वह व्यक्ति जो ब्रह्म को जानता है एवं जिसके अंदर ऋषित्व उपस्थित है, वही ब्राह्मण है। यानी ऐसा व्यक्ति जो अपने आसपास मौजूद सभी प्राणियों के जन्म की प्रक्रिया और उसके कारण को जानता है, जिसके अंदर लोक कल्याण की भावना हो ऐसा व्यक्ति ब्राह्मण कहलाता है। यह एक वर्ण है, जाति नहीं है। कर्म के आधार पर ब्राह्मण का निर्धारण होता था। समय के साथ वर्ण व्यवस्था में विकृति आती गई और वर्ण व्यवस्था को जाति का नाम दे दिया गया।

क्या पंडित का क्या अर्थ होता है, क्या कोई भी व्यक्ति पंडित बन सकता है 

भारतवर्ष में जब विश्वविद्यालय नहीं थे। योग्यता का निर्धारण शास्त्रार्थ के दौरान प्रदर्शन पर निर्भर करता था तब विशेषज्ञों का एक समूह सर्वश्रेष्ठ एवं योग्य व्यक्ति का चयन करता था। ऐसे व्यक्ति को पंडित कहा जाता था। सरल शब्दों में ऐसा व्यक्ति जो किसी विषय विशेष का ज्ञाता हो। जिसने उस विषय पर अध्ययन किया हो एवं कुछ नया खोज निकाला हो उसे पंडित कहा जाता था। पंडित एक उपाधि है। आप इसे पीएचडी के समकक्ष मान सकते हैं। यह उपाधि केवल हिंदुओं की पूजा पद्धति में पारंगत या विशेषज्ञों को नहीं दी जाती थी बल्कि उनके अलावा किसी भी प्रकार की कला में दक्षता हासिल करने के बाद, रिसर्च करें और कुछ नया खोज निकाले तो उसे पंडित कहा जाता था। संगीत आदि कलाओं में पंडित की उपाधि आज भी पीएचडी से अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। शास्त्रों के अलावा शस्त्र विद्या की शिक्षा देने वाला योद्धा भी पंडित (आचार्य) कहलाता था।

वर्तमान स्वरूप  पंडितों का इस प्रकार से है

जातिवाद पैदा करना   ?
विशेष व्यक्ति को अनुचित मार्गदर्शन देने देना ?
मानव समाज मैं भय  फैलाना ?
मीट मटन शराब का सेवन करना ?

वास्तविकता पंडितों के विचार कुछ इस तरह से थे /


लेकिन अपने आप में पंडित समझना एक भ्रम है
किसी पंडित के घर में जन्म लेने से पंडित नहीं होते
हमारी संस्कृति के अनुसार पंडितों का आचार विचार और भावना देश हित में हो अपनी संस्कृति वचाय रखना ही पंडित होता है
लेकिन आप आजकल इस तरह के पंडित ज्यादा देखने को मिलेंगे


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