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शंकर व्याख्यानमाला में कोविड-19 की चुनौतियाँ और एकात्मबोध पर व्याख्यान

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संस्कृति विभाग के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, द्वारा रविवार को 'कोविड 19 की चुनौतियां और एकात्मबोध' पर ऑनलाइन शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इसमें आर्ष विद्या मंदिर, राजकोट के संस्थापक आचार्य और स्वामी दयानंद सरस्वती के शिष्य प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु स्वामी परमात्मानंद सरस्वती का उद्बोधन हुआ। स्वामी जी ने कहा कि कोरोना काल में जिस प्रकार हमें जागरूकता तथा मर्यादा बरतनी पड़ रही है यही एकात्मबोध का तथा भारतीय परंपरा का मूल बिंदु रहा है। महात्मा गाँधी की मितव्ययिता का उदाहरण देते हुए स्वामी जी ने कहा कि हमें मितव्ययी होना चाहिए, संसाधनों का अनावश्यक उपयोग नहीं करना चाहिए।
व्याख्यान में स्वामी जी ने बताया की संपूर्ण विश्व एक ही तत्व की अभिव्यक्ति है, जिसे हम ईश्वर अथवा परब्रह्म कहते हैं। वह ईश्वर ही सृष्टि रूप में प्रकट हुए हैं। यहां दृष्टा और दृश्य में कोई भेद नहीं है। इसी को एकात्म दृष्टि कहते हैं। स्वामी जी ने बताया कि हमारी परंपरा न ही एकेश्वरवाद की है न ही बहुदेववाद की। हमारी परंपरा कहती है सर्वम खल्विदं ब्रह्म- ईश्वर एक अथवा अनेक नहीं है बल्कि केवल वही सर्वत्र व्याप्त है। इशोपनिषद में कहा है-इशावस्यम इदं सर्वं। सभी में ईश्वर का दर्शन करना ही एकात्मबोध है।
कोरोना काल में हमें समाज को जागरूक तथा मर्यादित बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए। वैश्वीकरण के युग में हम सभी एक दूसरे पर आश्रित तो हैं किंतु हमारे बीच सहिष्णुता, सद्भाव और विश्वास की कमी है। जिस प्रकार शरीर के अंग एक दूसरे के सहायक तथा पूरक होते हैं उसी प्रकार हमें भी संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए चिंतन करना चाहिए।

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