ग्वालियर बड़ी कंपनियां और समृद्ध लोग बैंक से लोन तो लेते हैं, लेकिन उसे चुकाना भूल जाते हैं और बैंकों के लोन नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए बनते जाते हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में स्व-सहायता समूह बनाकर छोटे-छोटे काम करने वाली गरीब और जरूरतमंद महिलाओं ने बैंकों की पाई-पाई चुकाकर मिसाल कायम की है।
मप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बीते एक साल में बैंकों ने महिलाओं के 1081 समूहों को 1 लाख से 10 लाख रुपए तक के करीब 13 करोड़ 51 लाख का लोन बांटा। इसमें से एक भी लोन डिफॉल्ट या एनपीए नहीं हुआ। वहीं ग्वालियर में ही विभिन्न योजनाओं में 32,500 लोगों ने जिसमें उद्यमी से स्ट्रीट वेंडर तक शामिल हैं, उन्होंने पिछले 1 साल में 1586 करोड़ का लोन दिया लेकिन उसमें से 70% लोन एनपीए होता देख, बैंकें अब उनको आरबीआई की गाइडलाइन के मुताबिक रि-स्ट्रक्चर कर रही हैं।
1081 स्व सहायता समूहों से जुड़ी हैं 10 हजार महिलाएं
1081 स्व सहायता समूहों से करीब 10 हजार महिलाएं जुड़ी हैं। ये महिलाएं बैंकों से मिलने वाले इस लोन की बदौलत डलिया बनाने, पापड़ बनाने, बुनाई-कढ़ाई, सिलाई, सजावट आदि कई कामों को कर अपनी आजीविका चलाती हैं। ब्याज भी मात्र 2 प्रतिशत ही लगता है। अच्छी बात यह है कि अपनी आजीविका की जरूरतों को पूरा करने के साथ ही बैंकों का लोन समय पर चुकाने की मंशा के कारण ही एक भी लोन डिफॉल्ट नहीं हुआ। इस योजना में लिए लोन की वजह से गांव की जरूरतमंद महिलाएं सूदखोर और साहूकारों के कुचक्र से भी बच सकीं।
बैंकों को भी बड़े-बड़े धन्ना सेठों से ज्यादा गरीब महिलाओं पर भरोसा
लीड बैंक सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के लीड बैंक मैनेजर सुशील कुमार बताते हैं कि बड़े लोग करोड़ों रुपए के लोन लेकर डिफॉल्टर हो जाते हैं लेकिन ग्रामीण आजीविका मिशन में हमने गरीब और जरूरतमंद महिलाओं के समूहों को जो लोन दिए, वे डिफॉल्ट नहीं हुए। यानी उन्होंने न सिर्फ सरकार की इस योजना के उद्देश्य को सफल बनाने में अपना योगदान दिया बल्कि उन्होंने बैंकों का कर्ज चुकाकर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। हमारा भरोसा जरूरतमंद महिलाओं के स्व सहायता समूहों पर अन्य की तुलना में अधिक है।
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